शिमला: भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा की हिमाचल प्रदेश में सारी राजनीतिक उथल-पुथल के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ही दोषी हैं। इसलिए वह बीजेपी को दोष न दें। बहुमत खोने से वह विचलित हैं और बौखला गयें हैं। उनकी राजनीतिक नाकामी और अपने ही पार्टी के लोगों के साथ भेदभाव करने के कारण प्रदेश की यह स्थिति उत्पन हुई है। आम आदमी से लेकर, कांग्रेस के नेता, पदाधिकारी, विधायक मंत्री सब सुक्खू सरकार की कारगुज़ारियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे लेकिन मुख्यमंत्री अपने दरबारी राजनीतिक सिपाहियों से घिरे रहते हैं और विधायकों को अपमानित करते हुए विरोध की हर आवाज़ को अनसुना कर रहे थे। आज विधायक खुलेआम कह रहे है कि उनका छोटा से छोटा काम नहीं हो रहा था। उनकी फ़रियादें उनके सामने ही डस्टबिन में डाल दी जाती थी। मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश का होता है। इसलिए उसे अपने राजनीतिक विद्वेष से ऊपर उठकर काम करना चाहिए था। जयराम ने प्रदेश के अधिकारियों से निवेदन किया कि वह भी लक्ष्मण रेखा न लांघे। क़ानून के दायरे में अपना काम करें। इस सरकार के भविष्य के साथ अपना भविष्य न जोड़ें।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश देवभूमि है पर वर्तमान कांग्रेस सरकार के राज में हिटलर भूमि बन गया है। पूरे प्रदेश में बदले की भावना के साथ कार्य हो रहा है। जब यह राजनीतिक परिस्थितियां मुख्यमंत्री की नाकामी और उनके तानाशाही रवैये के कारण हुई है तो राजनीतिक दबाव के चलते विधायकों और उनके परिवार के साथ ज़्यादती क्यों हो रही हैं? उन्हें प्रताड़ित क्यों किया जा रहा है? कांग्रेस के 6 विधायकों के घर के बाहर दीवार लगा दी जाती है। उनसे जुड़े नगर निगम के पार्षदों को निष्कासित कर दिया जाता है। विधायकों व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जाता है। कांग्रेस के छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं को खंड स्तर पर भी सुक्खू का प्रकोप झेलना पड़ रहा है। विधायकों के ख़िलाफ़ सरकार द्वारा सुनियोजित तरीक़े से प्रदर्शन प्रायोजित करवाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री स्पष्ट करें कि वह क्या साबित करना चाहते हैं।
हिमाचल प्रदेश की पुलिस आज राजनीतिक दबाव में कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री अपने झूठ को सत्य में बदलने के लिए काम कर रहे और अपनी नाकामियों का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ना चाहते हैं। प्रदेश में विकास ठप है, मुख्यमंत्री दोनों हाथों से अपनी कुर्सी बचाने में मस्त हैं। हिमाचल में कांग्रेस सरकार बहुमत खो चुकी है। जिसके कारण मुख्यमंत्री विचलित हैं और बौखलाहट में भाजपा को जिम्मेदार ठहरने में लगे हैं। जब से कांग्रेस सत्ता में आई है तब से मुख्यमंत्री रोना रोने में व्यस्त हैं। पहले वित्तीय कुप्रबंधन का रोना फिर क़र्ज़ ना मिलने का रोना, आपदा में पैसे ना मिलने का रोना और अब विधायकों के फिसल जाने पर भी बीजेपी कोस रहे हैं। मुख्यमंत्री को आदत है रो कर जनता की सुहानुभूति पाना।
जब से सरकार बनी है कांग्रेस के विधायक, मंत्री, कार्यकर्ता, प्रदेश के पदाधिकारी सब असंतुष्ट ही हैं। अनेकों बार इनकी प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने खुलेआम कहा है कि हमारे कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं है। विक्रमादित्य ने रोते हुए त्यागपत्र दे दिया। मंत्री कैबिनेट की बैठक से रोते हुए बाहर निकल रहे हैं और उप मुख्यमंत्री उन्हें खींचकर अंदर ले जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि अपने क्षेत्र की विकास की आवाज उठाना गलत है। इन छह विधायकों ने अपने क्षेत्र की विकास की आवाज उठाई तो इनको दंडित किया गया। जब घुटन के माहौल में यह लोग रहे तब राज्यसभा चुनाव में इनका रोष सामने आया, उनकी पीड़ा पर मोहर लगी। मुख्यमंत्री को इस बता का जवाब देना चाहिए कि उनके विधायकों ने कांग्रेस के इलेक्शन एजेंट को दिखाकर बीजेपी प्रत्याशी को वोट दिया। यह सहज रूप से स्पष्ट करता है कि मुख्यमंत्री और सरकार के प्रति उनके मन में कितना रोष है। उनके नेता लगातार सरकार और संगठन के बीच तालमेल पर सवाल उठाते रहे। एक बार नहीं अनेकों बार लेकिन मुख्यमंत्री के द्वार उनके लिए हमेशा बंद रहे। मुख्यमंत्री को यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने अपने ही विधायकों की आवाज़ को क्यों अनसुना किया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अंतरात्मा में विश्वास नहीं रखते हैं। विधायक कह रहे हैं की अंतरात्मा की आवाज पर उन्होंने हिमाचल के ‘हर्ष’ का साथ दिया तो भी मुख्यमंत्री उन पर अमर्यादित आरोप लगा कर उन्हें सत्ता के दुरुपयोग से परेशान कर रहे हैं।