शिमला(कपिल शर्मा):हिमाचल प्रदेश में सरकार ओपीएस बहाली को लेकर लगातार आगे बढ़ रही है। इस संबंध में दिल्ली दौरे से लौटकर राज्य सचिवालय पहुंचे मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वित्त विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की। राज्य में सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को लागू करने के संबंध में चार घंटे से अधिक चर्चा हुई, जिसमें योजना के हर पहलू पर चर्चा हुई। इससे राज्य सरकार पर कितना वित्तीय बोझ पड़ेगा, इसका खाका तैयार कर लिया गया है। माना जा रहा कि वर्ष 2028 तक सेवानिवृत्त होने वाले एनपीएस कर्मचारियों को ओपीएस का पेंशन लाभ देने के लिए चरणबद्ध ढंग से 500 से 700 करोड़ रुपये चाहिए होंगे। इस राशि की एकमुश्त आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बैठक में मुख्य सचिव (वित्त) प्रबोध सक्सेना, सचिव (वित्त) अक्षय सूद के अतिरिक्त मुख्य सचिव आरडी धीमान और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सुभाषीश पंडा विशेष रूप से उपस्थित रहे। मुख्यमंत्री सुक्खू ने साफ कर दिया है कि पहली कैबिनेट मीटिंग में ओपीएस की घोषणा की जाएगी, जिसके लिए वित्त विभाग एपीएस कर्मचारियों से भी वार्ता करे। उनके साथ चर्चा के लिये 28 तारीख की तिथि निर्धारित की गई है, जिसमें उनके भी सुझाव लिए जाएंगे और इसके बाद फ़ाइनल ड्राफ़्ट को कैबिनेट में लाया जाएगा।
ओपीएस बहाली के लिए रहेगा पंजाब पैटर्न:
बैठक में वित्त विभाग की तरफ से पंजाब के पैटर्न को रखा गया। पंजाब में जिस तरह का पैटर्न अपनाया है, लगभग उसपर ही सहमति बन रही है। हालांकि चर्चा राजस्थान और छत्तीसगढ़ मॉडल पर भी हुई। इसलिए वित्त विभाग का फोकस उसी पर था। सीएम ने वित्त विभाग के अधिकारियों को संसाधन जुटाने के लिए कहा है।
10 के बजाय 40 हजार रुपये मासिक पेंशन देने की, कि जा रही है तैयारी:
अब नेशनल पेंशन योजना (एनपीएस) कर्मियों को अब 20 वर्ष नौकरी के बाद 10 के बजाय 40 हजार रुपये मासिक पेंशन देने की तैयारी की जा रही है।
वर्ष 2025 में अधिक ओपीएस कर्मी होंगे सेवानिवृत्त
ओपीएस कर्मचारी वर्ष 2025 में अधिक सेवानिवृत्त होंगे। अभी सरकार पर ओपीएस पेंशन का वित्तीय बोझ 9000 करोड़ रुपये है। आने वाले तीन वर्ष में यह 11000 करोड़ रुपये पहुंचकर नीचे उतरने लगेगा। इस समय ओपीएस पेंशनधारकों की संख्या 1.71 लाख है। वर्ष 2028 तक पेंशन का बोझ घटकर 5000 करोड़ रुपये तक पहुँच सकता है।
तत्काल वित्तीय भार नहीं पड़ेगा
ओपीएस लागू करने का तत्काल वित्तीय बोझ पड़ने की संभावना नहीं है। कारण यह कि वर्ष 2003 के बाद से 20 हजार कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जिनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिन्होंने नियमित होने के बाद 10 साल पूरे नहीं किए। पहले तो दैनिक वेतनभोगी रहे, उसके बाद अनुबंध पर आए और फिर नियमित हुए और एक-दो साल बाद सेवानिवृत्त हो गए। यदि सरकार सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन देने की घोषणा करती है तो नियमानुसार उन्हें मुश्किल से 10 हजार रुपये पेंशन का भुगतान करना पड़ सकता है।