हिमाचल प्रदेश में 8 दिसंबर को आने वाले परिणाम में लगभग कांग्रेस का सत्ता में आना तय माना जा रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री के पद की दावेदारी को लेकर बड़े-बड़े कयास लगाए जा रहे हैं। चूंकि कांग्रेस हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है, लिहाजा इस जीत के बाद वह लंबी पारी खेलने के लिए शुरू से तैयारियां करेगी। जाहिर है जीत के बाद किसी युवा और राजपूत वर्ग से जुड़े व्यक्ति को ही हाईकमान मुख्यमंत्री बनाने की ताजपोशी करवा सकती है।
अब सवाल उठता है कि ठाकुर कौल सिंह, मुकेश अग्निहोत्री, सुखविंदर सिंह सुक्खू और हर्षवर्धन चौहान में से कौन-सा चेहरा सटीक साबित होता है। हालांकि यह गणित इन सभी की जीत के बाद ही सुनिश्चित होता है, बावजूद इसके यदि चारों ही जीत जाते हैं, तो मुख्यमंत्री के लिए कौन-सा चेहरा परफेक्ट माना जा सकता है। हालांकि ठाकुर कौल सिंह मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जताते हैं, मगर उन्हें पार्टी में जी-23 वाले ग्रुप का व्यक्ति माना जाता है।
यह वह ग्रुप है जिसने गांधी परिवार को सबसे ज्यादा टेंशन दी है। इस ग्रुप में आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल , वीरप्पा मोइली, मनीष तिवारी आदि माने जाते हैं। ऐसे में मौजूदा समय भले ही कौल सिंह कांग्रेस से टिकट लड़कर पार्टी के साथ खड़े हैं मगर पुराना दूध बगैर गर्म किए कब फट जाए कहा नहीं जा सकता। अगर इस नजरिए से भी ना देखा जाए तो बावजूद इसके हाईकमान प्रदेश में एक यंग व्यक्ति को ही मुख्यमंत्री बनाएगा।
गौरतलब हो कि पूर्व में कांग्रेस से मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय वीरभद्र सिंह भी युवा अवस्था में मुख्यमंत्री बने थे और स्वर्गीय वीरभद्र सिंह ने प्रदेश में कांग्रेस को बुलंदियों पर भी पहुंचाया और खुद भी मुख्यमंत्री के रूप में लंबी पारी खेल कर गए। जातीय समीकरणों के आधार पर राजपूत वर्ग से ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। ऐसे में मुकेश अग्निहोत्री हाईकमान की नजरों से ओझल नजर आते हैं। रानी प्रतिभा सिंह की बात की जाए तो उन्होंने चुनाव लड़ा ही नहीं है।
क्योंकि पीसीसी के चुनाव में यह पहले ही स्पष्ट कर दिया गया था कि अध्यक्ष पद का दावेदार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगा। इस पर जो प्रमुख दावेदार थे उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया था। वैसे भी रानी प्रतिभा सिंह संगठन के तौर पर कुछ खास दमदार साबित नहीं हुई है। कांग्रेस की जीत में अगर अहम भूमिका होगी तो वह है कर्मचारी वर्ग। जाहिर है, ना ही संगठनात्मक तौर पर और ना ही अन्य किसी आधार पर प्रतिभा सिंह सीएम पद की दावेदार हो नहीं सकती।
तो आखिर दो प्रमुख चेहरों में सुखविंदर सिंह सुक्खू और हर्षवर्धन चौहान कोई भी हाईकमान की नजर में सीएम हो सकता है। हाईकमान यह भी जानता है कि अगर सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री के रूप में देखा जाए तो वीरभद्र गुट की ओर से रानी प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य इस पर बिल्कुल भी सहमत नहीं होंगे। क्योंकि प्रदेश में अब वीरभद्र गुट की जगह सुखविंदर सिंह सुक्खू का गुट पार्टी के प्रभाव में है।
हर्षवर्धन चौहान भी सुखविंदर सिंह सुक्खू के गुट के ही माने जाते हैं। ऐसी स्थिति में सुखविंदर सिंह सुक्खू यदि कंट्रोवर्सी का शिकार होते हैं तो वह किंग मेकर की भूमिका में भी आ सकते हैं। जाहिर है सुखविंदर सिंह सुक्खू भी हर्षवर्धन चौहान की कमर पर हाथ रख सकते हैं। हर्षवर्धन चौहान नॉन कंट्रोवर्शियल है ईमानदार है, युवा है और कांग्रेस के कर्मठ सिपाही रहे हैं। यही नहीं, भाजपा को हर मोर्चे सहित विधानसभा में भी घेरने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिकाएं रही है।
हर्षवर्धन राजपूत लॉबी से है युवा है और लंबी पारी खेल सकते हैं। तकनीकी रूप से देखा जाए तो भाजपा ने सिरमौर में कांग्रेस के किले को भेदने के लिए प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप को बनाया था। जबकि इससे पूर्व डॉ राजीव बिंदल प्रदेश अध्यक्ष रहे। संख्या के आधार पर यदि कांगड़ा जिला निर्णायक साबित होता है तो राजनीतिक नजरिए से सिरमौर भाजपा को भारी पड़ता है। भाजपा के प्रमुख बड़े चेहरों को घेरने के लिए हर्षवर्धन परफेक्ट नेता माने जा सकते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि हाईकमान सुखविंदर सिंह सुक्खू या हर्षवर्धन चौहान दोनों में से किसी एक को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे कर सकता है।
वही, यह भी माना जा रहा है कि यदि अजय सोलंकी भाजपा के सबसे कद्दावर नेता और राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले डॉ राजीव बिंदल को पछाड़ देते हैं। तो निश्चित रूप से वह अपनी पहली पारी में ही मंत्री पद के भी दावेदार होंगे। कुल मिलाकर कहा जाए तो सत्ता में वापसी को लेकर कांग्रेस आने वाले 5 सालों के लिए बहुत ही शूज बूज के साथ एक बेहतर तालमेल बनाने की कोशिश जरूर करेगी।