पांवटा साहिब, 22 नवंबर (न्यूज़डे नेटवर्क): शिलाई विधानसभा क्षेत्र की कमराऊ तहसील में स्थित भजोंन पंचायत का गाभर गाँव आजादी के 77 वर्ष बाद भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है। गाँव तक पहुँचने के लिए मात्र दो से तीन फ़ीट चौड़ा कच्चा रास्ता ही उपलब्ध है, जिसके सहारे ग्रामीणों को आवाजाही करनी पड़ती है। सड़क की इस बदहाल स्थिति ने धीरे-धीरे पूरे गाँव को उजाड़ने का काम किया। कभी 28 घरों और लगभग 250 की आबादी वाले इस गाँव में आज केवल 4 घर और कुल 25 लोग ही बचे हैं, जबकि बाकी सभी बेहतर सुविधाओं की तलाश में वर्षों पहले पलायन कर चुके हैं।
101 वर्षीय बुजुर्ग मोही राम अब भी देख रहे है सड़क की राह
आज भी गाँव में डटे हुए परिवारों में दलीप सिंह पुंडीर, राजेश पुंडीर, सुरेश पुंडीर, इन्द्र सिंह पुंडीर सहित लगभग 101 वर्षीय बुजुर्ग मोहिराम पुंडीर शामिल हैं। बंदूक लाइसेंस के अनुसार उनका जन्म 1924 में दर्ज है। वे बताते हैं कि सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा के अभाव के कारण अधिकांश ग्रामीण गाँव छोड़ने को मजबूर हुए, लेकिन उनका अपनी मिट्टी से जुड़ाव उन्हें आज भी यहीं रोके हुए है। मोहिराम पुंडीर भावुक होते हुए कहते हैं, “मैंने जीवन के सौ से अधिक वर्ष यहीं बिताए हैं। बस एक ही इच्छा है कि अपने जीते-जी अपने गाँव में गाड़ी आती हुई देख सकूँ। स्वास्थ्य समस्या आने पर सड़क तक पहुँचना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाता है।
स्थानीय निवासी दलीप सिंह पुंडीर बताते हैं कि सड़क न होने के कारण गाँव आजादी के बाद से ही विकास से कटकर रह गया। उनके अनुसार, “सरकारी तंत्र कभी इस गाँव में नहीं आया। हमने तो यह समझना ही छोड़ दिया है कि आजादी का लाभ सभी तक पहुँचता है। हम मजबूरी में यहाँ रह रहे हैं, वरना पलायन ही एकमात्र विकल्प रह जाता है ”गाँव की जमीन बेहद उपजाऊ है और यहाँ अदरक व लहसुन की उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली फसल होती है, लेकिन बाजार तक पहुँच न होने के चलते किसान समय पर उपज बेच नहीं पाते और भारी आर्थिक नुकसान उठाते हैं। दलीप पुंडीर बताते हैं कि सतोन–रेणुकाजी मार्ग से काटली से गाभर तक लगभग 3 किलोमीटर सड़क बननी है, जिसमें करीब 2 किलोमीटर हिस्सा वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है। यही इस सड़क निर्माण में मुख्य बाधा है।
सिकुड़कर केवल 2 से 3 फ़ीट रह गया है मुख्य मार्ग
साल 2002-03 में वन विभाग ने सूखे पेड़ों की निकासी हेतु 5 फ़ीट चौड़ा बैलगाड़ी मार्ग बनाया था, परंतु आज यह सिकुड़कर केवल 2 से 3 फ़ीट रह गया है। ग्रामीणों ने इसे चौड़ा करने के लिए डीएफओ रेणुकाजी से अनुमति भी मांगी थी। विभाग ने हाथ से मलबा हटाने की इजाजत तो दी, लेकिन मशीनों के उपयोग की अनुमति न मिलने के कारण मार्ग में सुधार संभव नहीं हो सका। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का हाल भी यहाँ चिंताजनक है। गाँव का प्राथमिक स्कूल 2003 में बंद हो गया था, जिसके बाद बच्चों को प्रतिदिन डेढ़ घंटे पैदल चलकर कोड़गा या मानल स्कूल जाना पड़ता है। स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में बीमार मरीजों को चारपाई पर डालकर 3 किलोमीटर दूर सड़क तक ले जाना पड़ता है।
क्या कहते है अधिकारी
पीडब्ल्यूडी सतोन के एसडीओ योगेश शर्मा ने बताया कि गाभर सड़क की 4.5 किलोमीटर लंबी डीपीआर तैयार कर भेजी जा चुकी है। क्योंकि प्रस्तावित मार्ग का 2.9 हेक्टेयर क्षेत्र वन विभाग के अधीन है, इसलिए फाइल डीएफओ रेणुकाजी के पास अनुमोदन हेतु भेजी गई है। स्वीकृति मिलते ही आगे की कार्यवाही शुरू की जाएगी।
गाँव के लोग अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार उनकी व्यथा सुनेगी और एक दिन सड़क बनकर गाभर गाँव को विकास की मुख्यधारा से जोड़ देगी।



बहुत ही अच्छी खबर आप द्वारा लगाई गई हकीकत में अगर ऐसी जायज मांग की खबरें लगाई जाए तभी इसे उजड़े हुए गांव दुबारा से बस सकते है आप के इस खबरें द्वारा बहुत अच्छा काम किया गया है धन्यवाद 🙏